सामाजिक क्रियाकलाप

सीएसआईआर-800 कार्यक्रम

समाज के जीवन की गुणवत्ता सुधारने में सहायता करके समावेशी संवृद्धि के परम उद्देश्य को पूरा करने की दृष्टि से, एसीएसआईआर की अनिवार्यता है कि वे छात्र, जो अकादमी से पीएचडी की डिग्री प्राप्त करना चाहते हैं, वे सीएसआईआर-800 कार्यक्रम के अंतर्गत सामाजिक/ग्रामीण मुद्दों से संबंधित 6-8 सप्ताह की परियोजना पर कार्य कर सकते हैं। इसका आशय है कि राष्‍ट्र के लिए प्रासंगिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी गतिविधियों में सहभागिता से सामाजिक जागरूकता और जिम्मेदारी का सृजन एवं पोषण किया जाए।

इस कार्यक्रम का उद्देश्य है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से प्रासंगिक पहल से समाज का जीवन समुन्‍नत हो सके। तदनुसार, जिन दो प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित है :

ए) पददलित की आय में वृद्धि करना :

  • मूल्य योजित कृषि
  • संपत्ति का नुकसान
  • ऊर्जा दक्षता

बी ) जीवन की गुणवत्ता में सुधार :

  • कम लागत के आवास
  • सस्ती स्वास्थ्य देखभाल
  • पेयजल आपूर्ति
  • संधारणीय ऊर्जा
  • पर्यावरण संरक्षण के साधन

इस कार्यक्रम के अंतर्गत सीएसआईआर-800 के केंद्र क्षेत्रों से संरेखित सामाजिक प्रासंगिकता के एक वैज्ञानिक विषय का छात्र चयन कर सकते हैं और विस्तार से समस्या का अध्ययन करते हैं। तत्पश्चात, उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे तकनीकी-वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य और कार्यक्षम उपचार के उपायों हेतु सुझाव देंगे, जिसमें वृहत् स्‍तर पर जनसंख्‍या के जीवन की गुणवत्‍ता के उत्‍थान की संभावना हो। इस दिशा में, एसीएसआईआर-आईआईटीआर के बाईस छात्रों ने हमारे समाज में व्याप्त विविध समस्याओं के बारे में सूचना का प्रसार और जागरूकता पैदा करने के लिए उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार और झारखंड के राज्यों में विभिन्न ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया। कुछ लक्षित मुद्दों में कीटनाशक के सम्मिश्रण, जल-प्रदूषण ( पेयजल तथा भू-जल ), प्लास्टिक का अधिक उपयोग, कुपोषण, तम्बाकू के उपयोग, एलर्जी रोगों, औद्योगिक अपशिष्ट के कारण भू-जल संदूषण (उर्वरक उद्योग और औषधीय उद्योग), कीटनाशक का अधिक उपयोग, अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएं, गंगा और गोमती नदियों के जल में सूक्ष्‍मजीवों का संदूषण, खाद्य अपमिश्रण, स्वच्छता के रख-रखाव आदि हैं ।


लखनऊ और बाराबंकी के शहरी क्षेत्रों में कीटनाशकों की खुदरा दुकानों में कार्यरत कर्मचारियों के स्वास्थ्य जोखिम मूलयांकन हेतु एक एपीडेमियोलाजिकल अध्ययन संचालित किया गया, जो सामाजिक-आर्थिक सतर, पारिवारिक इतिहास, व्योक्तिगत आदतें और कार्य अभ्यासों पर आधारित था । इस अध्ययन से दुकानदारों में मोटर नर्व कंडक्शेन वेलोसिटी तथा लो पीक एक्सेपाइरेटरी फ्लो रेट में उल्लेखनीय रूप से कमी प्रकट हुई । दुकानदारों में न्यूरोलाजिकल, ओक्यूलर, कार्डियोवैसकुलर, तथा मसक्यूदलोस्केटलेटल लक्षण भी अधिक पाए गए । यह निष्कर्ष प्रथम दृष्ट‍या क्लीकनीकल घोषणा के साक्ष्य उपलब्ध कराते हैं जो कि कीटनाशकों के बहुप्रभावन तथा कार्यस्थोल पर खराब सुरक्षा संस्कृति के कारण है ।


लखनऊ शहर में टोकरी में बिकने वाली सब्जियों के नमूनों में कीटनाशकों के अवशेषों का अनुवीक्षण किया गया । 20 तरह की सब्जियों में आर्गेनोक्लोरीन्स, आर्गेनोफास्फेंट्स, सिंथेटिक पायरेथ्रायड्स तथा हर्बीसाइड्स सहित 48 कीटनाशक अवशेषों के आंकलन का अध्ययन किया गया जिसमें पत्तियों, जड़, संशोधित तना तथा फूलों वाली सब्जियों जैसे करेला, कटहल, फ्रेन्चस वीन, प्याज, कोलोकेसिया, तुरई, शिमला मिर्च, पालक, आलू, मेथी के बीज, गाजर, मूली, खीरा, शलजम, बैंगन, फूलगोभी, पत्तानगोभी, टमाटर, ओकरा तथा लौकी सम्मिलित है । 48 कीटनाशकों के नमूनों का विश्लेषण किया गया जिसमें तेईस कीटनाशकों का पता चला जिनकी मात्रा 0.005-12.35 मि0ग्रा0के0 जी0 -1 थी । कुछ सब्जियों जैसे मूली, खीरा, पत्ता गोभी, फूलगोभी तथा ओक्रा में कीटनाशकों (आई0एच0सी0एच0,परमीथ्रीन) II, डाइक्लोरवोस तथा क्लोरोफेविनओस) को अधिकतम अवशेष सीमा से ज्यादा पाया गया ।


एक निगरानी अध्ययन में करक्यूमिन जो हल्दी का एक प्रमुख करक्यूमिनॉयड है ओर इसके पीले रंग हेतु जिम्मेदार है तथा इसके खुले नमूनों बनाम ब्रांडेड हल्दी पाउडर का अनुवीक्षण इसकी गुणवत्ता हेतु किया गया । इस अध्ययन ने दर्शाया की करक्यूमिन की मात्रा ब्रांडेड नमूनों में 2 से 4 प्रतिशत थी जबकि गैर ब्रांडेड नमूनों में 0.3 से 2.7 प्रतिशत थी । खुले पाउडर में लगभग 17 प्रतिशत में असंगत रंग -मेटानिल यलो की उपस्थिति पाई गई जो कि 1-8.6 मि0 ग्रा0 प्रति ग्राम था । इस प्रकार हल्दी पाउडर हेतु वास्तविक करक्यूमिन सीमा निर्धारित करने की आवश्यकता है ।

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