मानव इतिहास के प्रारम्भ से ही इत्र और सुगंध का उपयोग किया जाता रहा है और इसका वर्णन ऐतिहासिक साहित्य में उपलब्ध है। "इंडिया फ्लेवर एंड फ्रेगरेंस इंडस्ट्री आउटलुक टु 2020" रिपोर्ट के अनुसार पिछले पांच वर्षों के दौरान भारत के सुगंध के बाजार में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। इस दिशा में हुई तकनीकी प्रगति, व्यक्तिगत सौंदर्य के प्रति बढ़ते महत्व और स्वस्थ उत्पादों पर उपभोक्ता खर्च में बढ़ोतरी ने इस वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। वैश्विक नेतृत्व प्राप्त करने के लिए यह आवश्यक है कि सुगंध उद्योग इस बढ़ते बाजार की चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार करे। इसके साथ ही यह आवश्यक है कि सुगंधों के मानकीकरण और वैज्ञानिक रूप से मान्य सुरक्षा डेटा भी उपलब्ध किया जाए। इस दिशा में उद्योग-शिक्षाविदों की साझेदारी के साथ एक सक्षम पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण इन लक्ष्यों को प्राप्त करने में तेजी लाएगा। सीएसआईआर-आईआईटीआर ने 15 फरवरी, 2018 को अपने परिसर में एक स्टेकहोल्डर वार्ता का आयोजन किया, जिसमें सुगंध उद्योग, संघ के नेताओं और नियामकों के प्रतिनिधियों के साथ उपरोक्त मुद्दों पर विचार-विमर्श करने और सुगंध उद्योगों के टिकाऊ भविष्य के लिए एक रोडमैप तैयार किया जाएगा।
अपने उद्घाटन भाषण में सीएसआईआर-आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर आलोक धावन ने कहा कि यही उचित समय है कि उद्योग से संबन्धित लोग और शिक्षाविद एक दूसरे के साथ बैठकर विचार करें और इस उद्योग को मजबूत करने, सभी हिस्सेदारों के लिए टिकाऊ भविष्य हेतु एक साथ काम करने के लिए रणनीति सुनिश्चित करें।
सीएसआईआर-केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) के निदेशक डॉ॰ अनिल के त्रिपाठी ने कहा कि शिक्षाविदों और उद्योग के बीच आपसी सहयोग केवल संवाद के द्वारा ही संभव है। व्यापार और उद्योग के निष्पक्ष प्रथाओं के माध्यम से किसानों का सशक्तिकरण सभी के लिए न्यायसंगत और टिकाऊ विकास सुनिश्चित करेगा।
अमरीका के रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर फ्रेग्रेन्स मैटेरियल्स (आरआईएफएम) के अध्यक्ष डॉ॰ जेम्स सी रोमाइन ने कहा कि सुगंध सार्वभौम है और इसकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना वैश्विक आवश्यकता है। आरआईएफएम का गठन आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले सुगंध सामग्री पर शोध करने के उद्देश्य से 1966 में किया गया था।
स्विट्जरलैंड के इंटरनेशनल फ्रेग्रेन्स एसोसिएशन (आईएफआरए) के अध्यक्ष, मार्टिना बियांची, ने कहा कि उनकी संस्था सदा से ही इस बढ़ते उद्योग में उचित अवसरों की तलाश में है। उन्होंने कहा कि बढ़ती जागरूकता इस उद्योग के सभी प्रकार के विकास को सुनिश्चित करने के लिए बेहतर निर्णय लेने का मार्ग प्रशस्त करेगी।
आईएफआरए और आरआईएफएम के अध्यक्ष श्री माइकल कार्लोस ने सीएसआईआर-सीमैप द्वारा परफ्यूम और आवश्यक तेलों के क्षेत्रों में किए गए कार्य और सीआईएसआईआर-आईआईटीआर द्वारा एक मंच पर सभी हितधारकों को एक साथ लाने के लिए किए गए प्रयासों को सराहा और कहा कि इससे इस उद्योग का विकास सुनिश्चित किया जा सकेगा।
श्री संत संगनेरिया, संस्थापक अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक, अल्ट्रा इंटरनेशनल लिमिटेड, नई दिल्ली (इस बैठक के उद्योग भागीदार) ने प्रतिभागियों का ध्यान वैश्विक सुगंध बाजार की विशाल क्षमता की ओर आकर्षित किया। उन्होंने कहा कि वैश्विक गुणवत्ता मानकों की आवश्यकताओं को पूरा करने की दिशा में भारतीय सुगंध उद्योग के लिए यह एक शानदार अवसर है जिससे अभिनव उत्पाद विकास के माध्यम से इसका समुचित लाभ उठाया जा सके।
वैज्ञानिक सत्रों के दौरान डॉ॰ शेखर मित्रा, अध्यक्ष, इनोप्रिनयोर एलएलसी, कंसल्टिंग पार्टनर, यूरेनकोर, एफएमआर, एसवीपी, ग्लोबल इनोवेशन एट प्रॉक्टर एंड गैंबल, सिनसिनाटी, ओहियो, यू.एस.ए; श्री॰ शक्ति विनय शुक्ला, निदेशक, सुगंध और स्वाद विकास केंद्र, कन्नौज; डॉ यू एस पी यादव, भारतीय मानक ब्यूरो, भारत; डॉ विजय बाम्बुल, सलाहकार, जॉनसन एंड जॉनसन, मुंबई; डॉ॰ ऐनी मैरी एपीआई, उपाध्यक्ष, रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर फ्रेग्रेन्स मैटेरियल्स (आरआईएफएम); श्री राहुल पराखिया, टोक्सिकोलोजिस्ट, आरआईएफएम और श्री आतिश पटेल, आरआईएफएम द्वारा महत्वपूर्ण प्रस्तुतीकरण दिये गए।
वैज्ञानिक सत्रों के बाद विशेषज्ञों द्वारा भविष्य की योजना तैयार करने के लिए एक पैनल चर्चा की सम्पन्न की गई।
49वां शांति स्वरूप भटनागर मेमोरियल टूर्नामेंट (आउटडोर ज़ोनल)
49वें शांति स्वरूप भटनागर मेमोरियल टूर्नामेंट (आउटडोर ज़ोनल) का उद्घाटन सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर), लखनऊ में 31 जनवरी, 2018 को 3.00 बजे किया गया। सीएसआईआर-आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर आलोक धावन ने मेहमानों और देश भर के 10 सीएसआईआर प्रयोगशालाओं से आए खिलाड़ियों का स्वागत किया, जो क्रिकेट और वॉली बॉल टूर्नामेंट लेने आए हैं। उन्होंने खिलाड़ियों से कहा कि इन खेलों का आयोजन खिलाड़ियों में खेल की भावना पैदा करने के लिए और सीएसआईआर के कर्मचारियों के बीच टीम के रूप में खेलने की भावना जागृत करने के लिए किया जाता है। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सीएसआईआर जैसे अनुसंधान संगठन में प्रतिस्पर्धी खेलों के लिए एक सीमित संभावना है। फिर भी सीएसआईआर प्रयोगशालाओं ने खेल को बढ़ावा देने के लिए पहल की और एक सार्वभौमिक मनोरंजन और एक व्यक्ति की आकांक्षाओं के महान अभिव्यक्तियों में से एक को उत्कृष्टता प्रदान करने के लिए प्रयत्न किया। उन्होंने यह भी कहा कि सीआईएसआईआर प्रणाली में किसी वैज्ञानिक और / या अन्य कर्मचारियों के लिए राष्ट्रीय / अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल में प्रतिस्पर्धा करना कठिन है। सीएसआईआर में विज्ञान के खेल में प्रतियोगिता करने के लिए 'क्लब स्पोर्ट्स’ ही सही विकल्प है जहां व्यक्ति अपनी शारीरिक और मानसिक फिटनेस के लिए खेलते हैं और भाग लेते हैं। इस अवसर पर श्री आर पी सिंह, खिलाड़ी, भारतीय राष्ट्रीय क्रिकेट टीम प्रमुख अतिथि थे। श्री सिंह ने लखनऊ से एक नौसिखिए खिलाड़ी से अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तक अपनी यात्रा का वर्णन किया। उन्होने खिलाड़ियों से खेलों को हार जीत की भावना से नहीं बल्कि खेल की भावना से खेलने को कहा। इस अवसर पर सीएसआईआर-सीमैप के निदेशक प्रोफेसर आर पी त्रिपाठी और सीएसआईआर-एनबीआरआई के निदेशक डा एस के बारिक भी उपस्थित रहे।
इसके बाद सीएसआईआर-आईआईटीआर लॉन्स में एक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किया गया।
शांति स्वरूप भटनागर मेमोरियल टूर्नामेंट(आउटडोर ज़ोनल) का भव्य समापन
सीएसआईआर - आईआईटीआर लखनऊ द्वारा आयोजित चार दिवसीय (1-4 फरवरी) 49वीं एसएसबीएमटी टूर्नामेंट (आउटडोर ज़ोनल) का समापन समारोह 4 फरवरी, 2018 को आयोजित किया गया। डॉ॰ वी एम तिवारी, निदेशक, सीएसआईआर-एनजीआरआई हैदराबाद, और सीएसआईआर स्पोर्ट्स प्रमोशन बोर्ड के अध्यक्ष समारोह के मुख्य अतिथि थे। प्रोफेसर आलोक धवन, निदेशक सीएसआईआर-आईआईटीआर और अध्यक्ष, आयोजन समिति ने विभिन्न सीएसआईआर प्रयोगशालाओं से आए मेहमानों और खिलाड़ियों का स्वागत किया जो क्रिकेट और वॉलीबॉल समारोहों में भाग लेने के लिए लखनऊ आए। उन्होंने कहा कि खेल की गतिविधियां अलग-अलग संस्थानों के बीच घनिष्ठ संबंध और एकजुट होने के लिए एक अनूठा अवसर प्रदान करती हैं। डॉ॰ वाई शुक्ला, संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक और उपाध्यक्ष, आयोजन समिति ने आधिकारिक तौर पर दोनों खेलों के विजेताओं की घोषणा की। सीएसआईआर-आईएमएमटी भुवनेश्वर और सीएसआईआर- सीईईआरआई पिलानी ने क्रिकेट में नाक-आउट मैच जीते और फाइनल के लिए अर्हता प्राप्त की। वॉलीबॉल में सीएसआईआर-सीईईआरआई, पिलानी और सीएसआईआर-एनपीएल, दिल्ली ने नाक-आउट मैच जीते और फाइनल के लिए अर्हता प्राप्त की।
डॉ डी कार चौधुरी, मुख्य वैज्ञानिक सीएसआईआर-आईआईटीआर और उपाध्यक्ष, आयोजन समिति ने मुख्य अतिथि डॉ वी.एम. तिवारी का परिचय दिया। डॉ॰ तिवारी ने अपनी टिप्पणी में कहा कि टीम भावना से खेले गए खेल वास्तव में हमेशा मानव मानदंडों पर विश्वास दिलाते हैं। उन्होंने सीएसआईआर-आईआईटीआर की खेलों को उत्कृष्ट तरीके से आयोजित करने पर सराहना की। डॉ आर.एस. रे द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव दिया गया।
नगर राजभाषा कार्यान्वन समिति (कार्यालय-3), लखनऊ की छमाही बैठक
सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को अप्रैल से सितंबर छमाही (2017-18) की अवधि में राजभाषा हिंदी में कार्यालयी कार्यों में उत्कृष्ट प्रदर्शन का द्वितीय पुरस्कार और संस्थान की राजभाषा पत्रिका ‘’विषविज्ञान संदेश’’ के अंक 27, वर्ष 2017-18 के प्रकाशन हेतु तृतीय पुरस्कार प्राप्त् हुआ। पुरस्कार के रूप में शील्ड’ और प्रमाणपत्र प्रदान किया गया। संस्थान की ओर से निदेशक, प्रोफेसर आलोक धावन, प्रशासन नियंत्रक, श्री अनिल कुमार तथा हिंदी अधिकारी, श्री चन्द्र मोहन तिवारी ने इस पुरस्कार को प्राप्त किया। यह पुरस्कार भारत सरकार, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (कार्यालय-3), लखनऊ की दिनांक 25.11.2017 को छमाही बैठक में प्रदान किया गया। भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आयोजित इस बैठक के दौरान 61 सदस्य कार्यालयों में से मूल्यांकन के आधार पर यह पुरस्कार दिया गया। भाकृअनुप- भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के निदेशक और अध्यक्ष, नगर राजभाषा कार्यान्वन समिति (कार्यालय-3), लखनऊ ने कहा कि वैज्ञानिक संस्थान होने के बावजूद इतने कम समय में भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने हिंदी में जो कार्य किया वह अन्य सभी कार्यालयों हेतु अनुकरणीय उदाहरण है। सी.एस.आई.आर.-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर), लखनऊ और नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, कार्यालय-3, लखनऊ के संयुक्त तत्वावधान में 11-13 अक्टूमबर, 2017 को आयोजित अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी ''पर्यावरण प्रदूषण: चुनौतियाँ एवं रणनीतियाँ” राजभाषा कार्यान्वन की दिशा में एक मील का पत्थर है। संस्थान का यह प्रयास उल्लेखनीय एवं सराहनीय है। अपने संबोधन में प्रोफेसर आलोक धावन, निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने कहा कि हमने राजभाषा हिंदी के माध्यम से जनसाधारण हेतु अधिकतर सामग्री का हिंदी में प्रकाशन किया है, जिनमें संस्थाान की छमाही राजभाषा पत्रिका ‘’विषविज्ञान संदेश’’, द्विभाषी वार्षिक प्रतिवेदन एवं अन्य जनोपयोगी सूचनाएं उल्लेखनीय हैं। उन्होंने कहा कि माननीय राज्य्पाल, उत्तर प्रदेश द्वारा पिछले वर्ष राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी के अवसर पर यह प्रेरणा दी गई थी कि हिंदी में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी का आयोजन किया जाए और एक वर्ष के अन्दर ही हमने इसका आयोजन किया। अपनी भाषा में ऐसे आयोजन से व्याापक प्रचार-प्रसार होता है और आपकी दृश्यता भी बढ़ जाती है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारे संस्थान के पॉंच शोध क्षेत्रों में से प्रत्येक से पॉंच-पॉंच लेखों को संकलित कर शीघ्र ही एक पुस्तक का प्रकाशन किया जायेगा। इससे जनसामान्य को शोध के क्षेत्र से संबंधित नवीनतम जानकारी प्राप्त हो सकेगी और वे इससे लाभान्वित हो सकेंगे।
तृतीय अंतरराष्ट्रीय टॉक्सीकोलॉजी कॉनक्लेव, आईटीसी-2017
5 नवंबर, 2017 को लखनऊ स्थित सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के एसएच ज़ैदी ऑडिटोरियम में दो दिवसीय उद्योग-अकादिमिया बैठक का उद्घाटन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ॰ राकेश कुमार, सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, नागपुर ने उद्घाटन संबोधन दिया और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद के पूर्व निदेशक डॉ॰ बी॰ ससीकरन ने "सुरक्षा पोषक तत्वों का मूल्यांकन " विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने रोज़मर्रा के जीवन में सूक्ष्म और स्थूल पोषक तत्वों के पर्याप्त संतुलन पर बल दिया और विटामिन और अन्य पोषक तत्वों की अधिक मात्रा में खपत और मानव स्वास्थ्य पर इनके प्रभाव की चर्चा की।
इस वैज्ञानिक कार्यक्रम के पहले दिन दो तकनीकी सत्र शामिल थे। प्रत्येक सत्र के बाद विषय पर एक विशेषज्ञ पैनल चर्चा और एक वैज्ञानिक पोस्टर सत्र का आयोजन किया गया। पहला सत्र 'पर्यावरण निगरानी और जोखिम आकलन' विषय पर था जिसमें क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा 5 व्याख्यान के बाद पैनल चर्चा की गई।
सीएसआईआर-आईआईटीआर, लखनऊ के वरिष्ठ प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ एससी बरमन ने इनडोर और आउट-डोर वायु गुणवत्ता से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों पर प्रकाश डाला और सीएसआईआर-आईआईटीआर द्वारा प्रदूषक भार का आकलन करने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया। उन्होने इन प्रदूषकों के मानव स्वास्थ्य पर असर और इन मुद्दों को हल करने के लिए उपायों की भी चर्चा की। मुंबई के हिकाल लिमिटेड के डॉ॰ सतीश सोहनी ने बताया कि कैसे उनकी फर्म भूजल के स्तर को बढ़ाने के लिए काम कर रही है। जीवन भर एक एकीकृत और समग्र जल समाधान प्रदान करने के लिए मुंबई में जल समाधान प्रबंधन की एक अभिन्न कंपनी, स्मार्ट वाटर, द्वारा अब तक किए गए प्रयासों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के डॉ॰ दिनेश मोहन ने कृषि क्षेत्र में फसल बायोमास जलाने से पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे को हल करने के लिए किए गए अपने अनुसंधान कार्यों की चर्चा की। डॉ॰ दिनेश मोहन ने बताया कि उन्होंने संयंत्र के अपशिष्ट पदार्थों से कम लागत वाले जैव-कोयला को विकसित किया है, जिसमें उच्च कार्बनिक कार्बन सामग्री और अपघटन के प्रतिरोधी हैं। यह बायोचार न केवल फसल जलाने से उत्पन्न समस्याओं को हल करने के लिए बेहद उपयोगी होगा बल्कि इसे पर्यावरण की दृष्टि से पानी, मिट्टी और जलवायु परिवर्तन शमन के लिए स्थायी तकनीक के रूप में भी माना जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि फसल के अवशेषों को विभिन्न थर्मल, जैव रासायनिक और यांत्रिक प्लेटफार्मों का उपयोग करके जैव ईंधन, गर्मी और बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है। आईआईटी, कानपुर के डॉ मुकेश शर्मा ने फिजिओलोजी आधारित फार्माकोकाइनेटिक मॉडल में अनिश्चितताओं के बारे में चर्चा की, जो मानव शरीर में लेड के अपटेक, एक्यूमुलेशन, आकलन, और उन्मूलन के बारे में बताती है। उन्होंने जीनोबायोटिक जोखिम के मानव स्वास्थ्य जोखिम का अनुमान लगाने के लिए इस मॉडल की प्रयोज्यता के बारे में बताया। डॉ॰ जॉन कॉलबोर्न, प्रोफेसर, पर्यावरण जीनोमिक्स विश्वविद्यालय, बर्मिंघम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम, ने जीनोम पर्यावरण की जटिलता के कारण डेटा की व्याख्या से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने जीनोम के तत्वों को मापने के महत्व को इंगित करने, जो प्राकृतिक चयन के लिए लक्षित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विषाक्त पर्यावरण परिस्थितियों के जोखिम में वृद्धि की जा सकती है, के संदर्भ में डेफ़निया और फंडुलस के मॉडल प्रजातियों के महत्व को बताया। चर्चा के निष्कर्ष और कार्यान्वयन के लिए अंतिम सिफारिशों को बनाने के लिए सत्र के मुख्य विषयों पर चर्चा करने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल भी था।
द्वितीय सत्र इनोवेशन और ट्रांसलेशनल रिसर्च' पर था, जिसमें चार व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के डॉ अनिल वाली ने भारत में अनुसंधान, इनोवेशन और स्टार्ट-अप को सिंक्रनाइज़ करने के लिए अकादमिक और उद्योग के बीच अंतराल को पाटने पर बल दिया। जैडस वेलनेस लिमिटेड, अहमदाबाद के डॉ॰ आर गोविंदराजन ने अपना व्याख्यान वैश्विक पुनरुद्धार संयंत्र आधारित पारंपरिक दवाओं पर दिया। उन्होंने हर्बल दवाओं के गुणवत्ता नियंत्रण पर शोध मापदंडों में किए गए विकास के बारे में बताया। उन्होंने विकसित हर्बल दवाओं के लिए उत्पन्न आंकड़ों के वैज्ञानिक सत्यापन की आवश्यकता पर भी जोर दिया। राष्ट्रीय अनुसंधान विकास सहयोग के डॉ एच॰ पुरुषोत्तम ने भारतीय परिदृश्य में सफल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण कारकों की पहचान पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होने उद्योगों को विकास संस्थानों तथा सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान केन्द्रों से सफल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों की पहचान की। पांड्रम टेक्नोलॉजीज बंगलुरु के डॉ॰ अरुण चंद्रू ने नई दवाइयाँ और टीके बनाने में पारंपरिक 2 डी सेल कल्चर, जन्तु मॉडल और मानव ट्रायल के बीच की खाई को पाटने के लिए बायोइंजिनीयर्ड 3डी फंक्शनल मानव टिश्यू और ओर्गेनोयड्स की भूमिका पर चर्चा की। सत्र के अंत में सत्र के मुख्य विषयों पर चर्चा करने के लिए और अंतिम सिफारिशों को को बनाने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल बैठा।
संस्थान का 52वां वार्षिक दिवस
देश के प्रमुख विषविज्ञान संस्थान, सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान में नवंबर 4, 2017 को 52वां वार्षिक दिवस मनाया गया। इस समारोह के मुख्य अतिथि प्रोफेसर अरुण तिवारी, पूर्व मिसाइल वैज्ञानिक और लेखक थे, जिसकी अध्यक्षता पद्मश्री डॉ॰ नित्या आनंद, पूर्व निदेशक, सीएसआईआर-सीडीआरआई ने की। संस्थान के निदेशक प्रोफेसर आलोक धावन ने अतिथियों का स्वागत किया और वर्ष 2016-2017 के लिए संस्थान की वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत की। उन्होंने इस काल में संस्थान के कई उल्लेखनीय योगदानों का वर्णन किया और कहा कि संस्थान का वार्षिक दिवस एक उपयुक्त अवसर होता है जब सभी कर्मचारी संस्थान के मिशन को प्राप्त करने के लिए पूर्व में निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं और भविष्य के लिए नए आयाम निर्धारित करते है। उन्होंने स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत, कौशल भारत, नमामी गंगे आदि जैसे राष्ट्रीय मिशन कार्यक्रमों के लिए संस्थान की प्रतिबद्धता को दोहराया और कहा कि संस्थान डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के साथ समन्वय में डिजिटल प्रारूप में अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी कर रहा है।
सीएसआईआर-आईआईटीआर के मुख्य वैज्ञानिक और आयोजन समिति के अध्यक्ष डॉ॰ डी॰ कार चौधरी ने मुख्य अतिथियों का परिचय दिया।
वार्षिक दिन व्याख्यान प्रस्तुत करते हुए, प्रोफेसर अरुण तिवारी ने कहा कि देश के समस्त विकास में बाधा "है" और "नहीं है" के बीच चौड़ा अंतर है। उन्होंने सुझाव दिया कि व्यक्तियों द्वारा सामाजिक दायित्व में वृद्धि इस खाई को पाटने का सबसे अच्छा तरीका है।
पद्मश्री डॉ॰ नित्या आनंद ने अध्यक्षीय भाषण दिया और सीएसआईआर-आईआईटीआर परिवार को अपनी उपलब्धियों पर बधाई दी, साथ ही साथ आग्रह किया कि वह पिछली उपलब्धियों पर ही संतोष न करें। उन्होंने वैज्ञानिकों को राष्ट्र के संस्थापकों के सपनों को पूरा करने के लिए काम करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर, सीआईएसआईआर-आईआईटीआर की वार्षिक रिपोर्ट (हिंदी और अंग्रेजी), प्रिंट मीडिया में सीएसआईआर-आईआईटीआर का एक संकलन, CITAR सुविधा (सेंटर फार इनोवेशन एंड ट्रांसलेशनल रिसर्च) पर एक ब्रोशर, नैनोटॉक्सिकोलॉजी पर एक पुस्तक और वर्ष 2018 के लिए संस्थान का कैलेंडर भी जारी किया गया। सीएसआईआर-आईआईटीआर परिवार के कई सदस्यों को उनकी प्रतिष्ठित सेवा संस्थान के लिए सम्मानित किया गया।
डॉ॰ देवेंद्र परमार, मुख्य वैज्ञानिक ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया। इस समारोह का समापन संस्थान के शोध छात्रों द्वारा एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के साथ संपन्न हुआ जिससे इनमे वैज्ञानिक उपलब्धियों के अलावा रचनात्मक और अभिनव क्षमताओं की भी छवि दिखाई पड़ी।
21वां प्रोफेसर सिब्ते हसन जैदी व्याख्यान
विषविज्ञान संस्थान सीएसआईआर- भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में पूर्व मिसाइल वैज्ञानिक और लेखक प्रोफेसर अरुण तिवारी ने 21वां प्रोफेसर सिब्ते हसन जैदी व्याख्यान दिया। इस व्याख्यान का आयोजन संस्थान के संस्थापक निदेशक प्रो॰ एस एच जैदी के सम्मान में हर वर्ष किया जाता है। अतिथियों का स्वागत करते हुए सीएसआईआर-आईआईटीआर के निदेशक प्रोफेसर आलोक धावन ने इसकी उत्पत्ति पर प्रकाश डाला और बताया कि यह व्याख्यान माला अपने 21वें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। उन्होंने कहा कि गुरुपर्व के पावन दिवस पर दर्शकों के बीच कई भूतपूर्व वैज्ञानिकों की उपस्थिति वास्तव में संस्थान और उसके कर्मचारियों के लिए एक विशेष महत्व रखता है।
मुख्य वैज्ञानिक डॉ योगेश्वर शुक्ला ने प्रोफेसर अरुण तिवारी और प्रोफेसर पी.के. सेठ, पूर्व निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर, का परिचय दिया। इसके बाद प्रोफेसर अरुण तिवारी द्वारा "साइंस ऑफ डिस्कवरी टु साइंस ऑफ डिलीवरी" पर व्याख्यान प्रस्तुत किया गया। उन्होंने कहा कि नए भारत के समक्ष गरीबी समाप्त करने और साझा समृद्धि को बढ़ावा देने जैसी कठिन समस्यायेँ हैं। उन्होंने यह भी कहा कि "कार्यान्वयन और निष्पादन का विज्ञान" समय की मांग है और कलाम-राजू स्टेंट का विकास, नागरिक उपयोग के लिए रक्षा प्रौद्योगिकी के सफल स्पिन ऑफ का एक आदर्श उदाहरण है। जन साधारण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए प्रौद्योगिकी के लाभों को देश के हर नागरिक तक पहुंचाना होगा। आवश्यकता है कि इस जटिलता को अपने वर्तमान दृष्टिकोण “क्या वितरित करें” से “कैसे वितरित करें” में बदल कर सरल किया जाए।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रोफेसर पी.के. सेठ, जिनको प्रोफेसर एस एच जैदी के साथ काम करने का सौभाग्य मिला था, ने प्रो॰ जैदी को एक दूरदर्शी बताया और कहा कि विषविज्ञान संस्थान स्थापित करना उनकी दूरदर्शिता थी। उन्होंने कहा कि समय की मांग है कि प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियां उपयोगकर्ताओं तक पहुंचें और बड़े पैमाने पर समाज लाभान्वित हो।
सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान में हिंदी सप्ताह 2017 के उद्घाटन समारोह का आयोजन
सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आज दिनांक 14 सितंबर, 2017 को प्रातः 10:30 बजे एस.एच. जैदी सभागार में हिंदी सप्ताह के उद्घाटन समारोह का आयोजन किया गया। श्री चंद्र मोहन तिवारी, हिंदी अधिकारी, आईआईटीआर ने अतिथिगण का परिचय दिया। समारोह के मुख्य अतिथि श्री पीयूष वर्मा, क्षेत्रीय पासपोर्ट अधिकारी, लखनऊ एवं विशिष्ट अतिथि डॉ. अनिल रस्तोगी, वैज्ञानिक एवं फिल्म कलाकार थे। इस अवसर पर मुख्य अतिथि श्री पीयूष वर्मा ने अपने संबोधन में कहा कि केवल हिंदी दिवस को नहीं संपूर्ण वर्ष इसी चेतना एवं संकल्प से हिंदी में अधिक से अधिक कार्य करें। हमें अपनी भाषा पर गर्व करना चाहिए। सरल भाषा का प्रयोग करते हुए विज्ञान की छोटी – छोटी पुस्तके हिंदी भाषा में लिखना चाहिए। भाषा को रोज़गार से जोड़ना चाहिए। हम सभी को हिंदी भाषा के विकास के लिए संकल्प लेना चाहिए। उन्होंने संस्थान की राजभाषा पत्रिका एवं हिंदी में किए जा रहे अन्य कार्यों की सराहना भी किया।
विशिष्ट अतिथि, डॉ. अनिल रस्तोगी ने अपने संबोधन में कहा कि हिंदी भाषा केवल भारत में ही नहीं अपितु अनेक देशों में बोली जाती है। उन्होंने भारत सरकार की विभिन्न हिंदी प्रोत्साहन योजनाओं तथा हिंदी भाषा में कार्य करने हेतु उपलब्ध डिजिटल टूल्स पर विस्तृत प्रकाश डालते हुए कहा कि हमें अपनी भाषा को बढ़ावा देने के लिए और गंभीर प्रयास करने चाहिए, हिंदी में सोचें, हिंदी में लिखें और हिंदी में ही बोलें।
समारोह की अध्यक्षता संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर आलोक धावन ने किया। उन्होंने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि विज्ञान को आगे ले जाने हेतु भाषा एक सशक्त माध्यम है। किसी देश की उन्नति उसकी भाषा और संस्कृति से होती है। हिंदी भाषा बहुत समृद्ध भाषा है, इसका शब्द भंडार बहुत विशाल है, वैज्ञानिक और तकनीकी कार्य इसमें आसानी से किए जा सकते हैं। हमारा संस्थान इसमें अग्रसर है, अनेक शोध पत्र, वैज्ञानिक लेख हिंदी में लिखे जा रहे हैं। वर्ष 2016 में हिंदी में राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी का सफलता पूर्वक आयोजन किया गया था और इस वर्ष 11–13 अक्टूबर, 2017 को अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी होने जा रही है। हिंदी सप्ताह के दौरान हमें विचार करना चाहिए कि कैसे हम अपनी राजभाषा हिंदी को और आगे ले जा सकते हैं और पूरे वर्ष कैसे अधिक से अधिक इसका प्रयोग कर सकते हैं। हम अपनी राजभाषा को कैसे आगे ले जाएं, यह सोच हम सभी के अंदर होनी चाहिए।
संस्थान के प्रशासन नियंत्रक, श्री अनिल कुमार ने बताया कि हिंदी सप्ताह के दौरान अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है। इसमें वैज्ञानिक, तकनीकी एवं प्रशासनिक अधिकारी/कर्मचारी/शोध-छात्र बढ़-चढ़कर भाग लेते है। समारोह के अंत में उन्होंने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। समारोह का संचालन श्री चंद्र मोहन तिवारी, हिंदी अधिकारी, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने किया ।
माननीय गृहमंत्री, भारत सरकार, श्री राजनाथ सिंह ने सीएसआईआर- भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान की राजभाषा पत्रिका “विषविज्ञान संदेश” के नवीनतम अंक का विमोचन किया
दिनांक 20 अगस्त, 2017 को माननीय गृहमंत्री, भारत सरकार, श्री राजनाथ सिंह जी ने संस्थान की राजभाषा पत्रिका “विषविज्ञान संदेश” के नवीनतम अंक का विमोचन किया। संस्थान के निदेशक, प्रोफेसर आलोक धावन ने माननीय गृहमंत्री को इस अवसर पर संस्थान की राजभाषा पत्रिका भेंट की। विमोचन के उपरांत माननीय गृहमंत्री जी ने कहा कि यह पत्रिका जनसामान्य के लिए बहुत उपयोगी होगी। माननीय गृहमंत्री जी ने कहा कि पत्रिका में विभिन्न विषयों जैसे पर्यावरण प्रदूषण, वायु प्रदूषण, प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण और खाद्य पदार्थों पर लेखों का सुंदर समावेश किया है। इसमें लेख सुसज्जित एवं व्यवस्थित हैं और इसमें अन्य कार्यक्रमों एवं जानकारियों हेतु निदेशक सहित संपादक मण्डल के सभी सदस्यों को इसके प्रकाशन के लिए बधाई दी । यह उल्लेखनीय है कि पत्रिका के विगत तीन अंकों को भारत सरकार, गृह मंत्रालय से प्रथम पुरस्कार प्राप्त होने पर उन्होंने इसकी सराहना की। प्रोफेसर धावन ने संस्थान के अन्य जागरूकता संबंधी प्रकाशनों जैसे वार्षिक प्रतिवेदन, पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य संबंधी प्रकाशनों को भेंट किया, जिसे माननीय गृहमंत्री ने सराहा और कहा कि विज्ञान संबंधी जानकारी देने हेतु यह सहज और सरल तरीका है तथा आम आदमी इससे जागरूक होगा। पर्यावरण प्रदूषण एवं खाद्य पदार्थों में मिलावट तथा शुद्ध पेय जल संबंधी प्रौद्योगिकी विकसित करने हेतु संस्थान के वैज्ञानिकों के योगदान की उन्होंने सराहना की। माननीय गृहमंत्री जी ने संस्थान द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह अन्य संस्थानों के लिए भी प्रेरणादायक होंगे।
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इमर्ज 2017 की सफल शुरुआत - सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान, लखनऊ संस्थान में स्नातक छात्रों को सशक्त बनाने के लिए कार्यक्रम
सीएसआईआर-भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ द्वारा 18 जुलाई, 2017 को एक कार्यक्रम ‘इमर्ज 2017’ सफलतापूर्वक प्रारम्भ किया गया। यह अंडर ग्रेजुएट छात्रों के लिए विषयगत एस एंड टी कार्यशालाओं पर सैद्धांतिक के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान को बेहतर बनाने के लिए एक अनूठा अवसर है। इस तीन दिवसीय कार्यशाला (18-20 जुलाई 2017) में आणविक जीवविज्ञान, नैनोटेक्नोलॉजी, उन्नत माइक्रोस्कोपी और बायोइनफॉरमैटिक्स 2017 विषयगत एस एंड टी जानकारी दी जाएगी। कार्यशाला का प्रारम्भ डा रामकृष्णन पार्थसारथि समन्वयक द्वारा भाग लेने वाले स्नातक छात्रों का स्वागत से हुआ। इस कार्यक्रम का उदघाटन डॉ पूनम कक्कर, मुख्य वैज्ञानिक डा कार चौधरी, मुख्य वैज्ञानिक, डॉ देवेंद्र परमार, मुख्य वैज्ञानिक और अध्यक्ष, मानव संसाधन सेल, सीएसआईआर-आईआईटीआर द्वारा किया गया। सम्मानित पैनल के सदस्यों ने प्रतिभागियों को विज्ञान की जरूरतों को हल करने के लिए जुनून के साथ विज्ञान का पथ अपनाते हुए प्रौद्योगिकियों के विकास करने के लिए प्रोत्साहित किया। सीएसआईआर-आईआईटीआर वैज्ञानिकों और उनकी टीम के सदस्यों के विशेषज्ञ मार्गदर्शन में विभिन्न विषयों पर सभी चार कार्यशालाएं समानांतर चल रही हैं। छात्र प्रतिभागियों ने उत्साह से वर्तमान में जीवन विज्ञान और नैनो अनुसंधान के क्षेत्र में उपयोग होने वाले विभिन्न उन्नत उपकरणों और तकनीकों का इस्तेमाल सीखा।
सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को राजभाषा पत्रिका "विषविज्ञान संदेश" के अंक 26 के प्रकाशन हेतु प्रथम पुरस्कार और हिंदी में कार्यालयी कार्यों में उत्कृष्ट प्रदर्शन का द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ
सीएसआईआर-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान, लखनऊ को संस्थान की राजभाषा पत्रिका "विषविज्ञान संदेश" के अंक 26, वर्ष 2016-17 के प्रकाशन हेतु प्रथम पुरस्कार और अक्तूबर से मार्च छमाही (2016-17) की अवधि में राजभाषा हिंदी में कार्यालयी कार्यों में उत्कृष्ट प्रदर्शन का द्वितीय पुरस्कार प्राप्त हुआ। पुरस्कार के रूप में शील्ड और प्रमाणपत्र प्रदान किया गया। यह भी उल्लेखनीय है कि संस्थान की राजभाषा पत्रिका को लगातार तीसरी छमाही में प्रथम पुरस्कार प्राप्त हुआ है। यह पुरस्का्र भाकृअनुप-भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान, लखनऊ में आयोजित भारत सरकार, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति (कार्यालय-3), लखनऊ की दिनांक 23.06.2017 को छमाही बैठक में प्रदान किया गया। संस्थान की ओर से निदेशक, प्रोफेसर आलोक धावन, प्रशासन नियंत्रक, श्री अनिल कुमार तथा हिंदी अधिकारी, श्री चन्द्रा मोहन तिवारी ने इस पुरस्कार को प्राप्त किया।