सी.एस.आई.आर.-भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-आईआईटीआर), लखनऊ, में दिनांक 18-01-2021 को दो दिवसीय राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी "पेयजल: समस्या एवं निवारण", (18-19 जनवरी, 2021) का मुख्य अतिथि, श्री बृजेश पाठक, माननीय कैबिनेट मंत्री, विधायी, न्याय, ग्रामीण अभियंत्रण सेवा, उत्तर प्रदेश सरकार ने उद्घाटन किया। उन्होंने कहा कि पेयजल ऑक्सीजन की तरह ही महत्वपूर्ण है। जल के बिना जीवन असंभव है। हम जैसे-जैसे प्रगति कर रहे हैं, पेयजल हमारे लिए चिंता का कारण बनता जा रहा है। अनियंत्रित जल दोहन से विकट समस्याएं सामने आ रही हैं। गहरी बोरिंग से भूजल स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। शहरों में निरंतर पक्के निर्माणों से भूजल स्तर पूरा नहीं हो पा रहा है। वर्षा जल का संचयन बहुत आवश्यक है। हमें जल एवं जल स्रोतों को संरक्षित कर उन्हें प्रदूषण से बचाना होगा। जिससे सभी को स्वच्छ पेय जल उपलब्ध हो सके। हम सब की ज़िम्मेदारी है कि हम अपने दैनिक कार्यों में इसका ध्यान रखें और जल को बरबाद न करें। इस हेतु हमें जनमानस को जागृत करना होगा। हमें आशा है कि पेयजल जैसे महत्वपूर्ण एवं उपयोगी विषय पर वैज्ञानिक गण के बीच होने वाली इस चर्चा में आमजन हेतु लाभकारी परिणाम प्राप्त होंगे।
राष्ट्रीय वैज्ञानिक संगोष्ठी की विशिष्ट अतिथि श्रीमती संयुक्ता भाटिया, माननीया महापौर, लखनऊ ने अपने संबोधन में कहा कि बढ़ती हुई आबादी और घटते जल संसाधन बहुत ही चिंता का विषय हैं। सभी को यह प्रयास करना चाहिए कि जल की बरबादी न हो। वर्षा जल का हर स्तर पर संरक्षण होना चाहिए। जल हम सबके लिए नितांत आवश्यक है। सभी को स्वच्छ पेय जल उपलब्ध कराना लखनऊ नगर निगम की प्राथमिकता है।
हिंदी माध्यम में आयोजित संगोष्ठी को पांच वैज्ञानिक, दो तकनीकी और एक छात्रों के लिए सत्र में विभाजित किया गया। सभी सत्रों में शिक्षा, उद्योग, नीति निर्माताओं और कार्यान्वयन एजेंसियों सहित विभिन्न हितधारकों द्वारा भागीदारी देखी गई। भारत में नदियों की स्थिति, ग्रामीण, अर्ध-शहरी और शहरी क्षेत्रों में जल उपलब्धता और आपूर्ति पर अलग-अलग सत्र आयोजित किए गए। छात्र सत्र में देश भर के संस्थानों से स्नातकोत्तर और डॉक्टरेट छात्रों द्वारा उत्साही भागीदारी देखी गई। प्रस्तुतीकरण हेतु युवा वैज्ञानिकों को पुरस्कार भी प्रदान किए गए।
प्रोफेसर एस.के. बारिक, संगोष्ठी के संरक्षक एवं निदेशक, सीएसआईआर-आईआईटीआर ने अपने सम्बोधन में कहा कि हम सभी जानते हैं कि पेयजल की समस्या समूचे विश्व में है। अत: हमें इसका सदुपयोग करना चाहिए और इसे बरबाद नहीं करना चाहिए, क्योंकि पेयजल का स्रोत बहुत सीमित है और इसकी मांग बहुत अधिक है। नदी, झील, झरने और तालाब आदि सभी को संरक्षित कर उन्हें पहले जैसी स्वच्छ अवस्था में बहाल करना होगा। इन्हें प्रदूषण से बचाना बहुत जरूरी है। जिससे कि स्वच्छ पेयजल प्राप्त हो सके। उन्होंने आगे कहा कि जल को स्वच्छ करने की प्रौद्योगिकी सस्ती एवं प्रभावी होनी चाहिए, वैज्ञानिकगण इसे ध्यान में रखकर कार्य करें। उन्होंने यह भी अवगत कराया कि संस्थान में पहले भी पर्यावरण और खाद्य विषयों पर राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों का आयोजन किया जा चुका है। राजभाषा हिंदी में आयोजित इन संगोष्ठियों के माध्यम से जनसाधारण को इसकी जानकारी प्राप्त होती है। संस्थान के शोध कार्यों को राजभाषा हिंदी में ज्यादा से ज्यादा उपलब्ध कराने का हमारा सदैव प्रयास रहता है ताकि जनसाधारण को इसकी जानकारी उपलब्ध हो। उन्होंने यह भी कहा कि संस्थान की राजभाषा पत्रिका के अंक 31 और 32 को वर्ष 2019-20 के लिए भारत सरकार, गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग से ‘क’ क्षेत्र में हेतु राष्ट्रीय स्तर पर द्वितीय राजभाषा कीर्ति पुरस्कार और वर्ष 2018-19 के लिए हिंदी कार्य हेतु क्षेत्रीय राजभाषा पुरस्कारों के अंतर्गत "तृतीय" पुरस्कार प्राप्त हुआ है।